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________________ ५६ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह । दशगंध हुताशनमांहि, हे प्रभु खेवत हों। मिस धूमकरम अरिजाहि, तुमपद सेवत हो ॥ चौबीसों श्रीजिनचंद, आनंदकंद सही। पद जजत हरत भवफंद. पावत मोनमही ॥८॥ या ह्रीं श्रीवृषभादिवागंनभ्योऽष्टकमदहनाय बृपं नि० ॥७॥ शुचि पक्व सुरसफल सार. सव ऋतुके ल्यायो। देवत दृगमनको प्यार, पृजत सुग्व पायो । चौबीसों श्रीजिनचंद, आनंदकंद सही। पद जजत हरत भवफंद, पावत मोनमही ॥६॥ प्रां ह्रीं श्रीऋपभादिवागतम्या मोक्षफल प्राप्रय फलं निव०।८। जलफल आठों शुचिसार, ताको अर्घ करों। तुम को अरपों भवतार, भवतरि मोक्ष वरों ॥ चौबीसों श्रीजिनचन्द, आनन्दकन्द सही । पद जजत हरत भवफंद, पावत मोलमही ॥१०॥ ओं ह्रीं श्रीवृपभादिवारांनभ्या अनर्यपदप्राप्तय अयं निर्व जयमाला । दाहाश्रीमत तीरथनाथपद. माथ नाय हित हेत । गाऊं गुणमाला अव, अजर अमरपद देत ॥१॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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