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श्री जैन पूजापाठ संग्रह।
ओं ह्रीं श्री वृषभादिमहावीरांतचतुर्विशतिजिनसमूह ! अत्र अवतर अवतर, संवौषट् आह्वाननं। ओं ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरांतचतुर्विशतिजिनसमूह . अत्र तिष्ठ तिष्ठ, ठः ठः स्थापनं । ओं ह्रीं श्री वृपभादिमहावीरांतचतुर्विशतिजिनसमूह अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्, सन्निधिकरणम् । मुनिमनसम उज्वल नीर, प्रासुक गंध भरा। भरि कनककटोरी धीर दीनी धार धरा ॥ चौबीसों भीजिनचंद, आनंदकंद सही। पद जजत हरत भवफंद, पावत मोक्षमही ॥२॥ ओं ह्रीं श्रीवृषभादिवरितभ्यो जन्ममृत्युविनाशनाय जलं. गोशीरकपूर मिलाय, केशर रंगभरी। जिन चरनन देत चढ़ाय, भवाताप हरी । चौबीसों श्रीजिनचंद, आनंदकंद सही। पद जजत हरत भवफंद, पावत मोक्षमही ॥३॥ ओं ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतभ्यो भवातापविनाशनाय चंदनं० तंदुल सित सोमसमान, सुंदर अनियारे । मुकता-फलकी उनमान, पुंज धरों प्यारे॥ चौबीसों श्रीजिनचंद, आनंदकंद सही। पद जजत हरत भवफंद, पावत मोक्षमही ॥४॥