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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह ओं ह्रीं उत्तमक्षमा माईव. श्राव. सत्य. शौच. संयम. तप, त्याग. आकिंचन. ब्रह्मचर्य दशलक्षणधर्म योऽय निर्वपामीति.
रत्नत्रयका अर्थ आठ द्रव्य निरधार, उत्तमसों उत्तम लिये। जन्म रोग निरवार, सम्यकरतनत्रय भजों ॥५॥ आं ह्रीं अष्टांग सम्यग्दर्शनाय. अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय यत्रांदश प्रकार सम्यक चारित्राय अघ निवपाानि स्वाहा ।।५।।
समुच्चयचाबीसी पूजा वृषभ अजित संभव अभिनंदन सुमति पदम सुपास जिनराय । चंद पुहुप शीतल श्रेयांस नमि, वासुपूज्य पूजितसुरराय ॥ विमल अनंत धर्म जस उज्वल, शांति कुंथु अर मल्लि मनाय । मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्वप्रभु, वर्द्धमान पद पुष्प चढ़ाय ॥१॥