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श्री जैन पूजा-पाठ सग्रह शुद्धबोध अविरुद्ध अनादि अनंत हो, जगत शिरोमणि सिद्ध सदा जयवंत हो॥१॥ ध्यान-अगनिकर कर्म कलंक सबै दहे, नित्य निरंजनदेव सरूपी ह रहे। ज्ञायकके आकार ममत्वनिवारिक, सो परमातम सिद्ध नमूं सिर नायके ॥२॥
दोहाअविचलज्ञान प्रकाशते, गुण अनंत की खान। ध्यान धरै सो पाइये, परमसिद्ध भगवान ॥३॥ अविनाशी आनन्दमय, गुणपूरण भगवान । शक्ति हिये परमातमा, सकल पदारथज्ञान ॥४॥
इत्याशीर्वादः।
सिद्धपूजाका भावाष्टक तथा भाषा द्रव्याष्टक । निजमनोमणिभाजनभारया, समरसैकसुधारसधारया । सकलबोधकलारमणीयक, सहजसिद्धमहं परिपूजये ।।