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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह जरामरणोज्झित बीतविहार । विचिंतित निर्मल निरहंकार ॥ अचिंत्यचरित्र विदर्प विमोह । प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥६॥ विवर्ण विगंध विमान विलोभ । विमाय विकाय विशब्द विशोभ ॥ अनाकुल केवल सर्व विमोह । प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥१०॥ असमसमयसारं चारुचैतन्यचिह्न, परपरणतिमुक्त पद्मनंदींद्रवंद्य ।
निखिलगुणनिकेतं सिद्धचक्र विशुद्ध, स्मरति नमति यो वास्तौति सोऽभ्येतिमुक्किं ॥११॥ ओं ही सिद्धपरमेष्टिभ्या महार्घ निर्वपामानि स्वाहा ।
अथाशीवादः । अडिल्लछन्द। अविनाशी अविकार परमरसधाम हो, समाधान सर्वज्ञ सहज अभिराम हो।