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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। ४६ मोहि तृषा दुख देत, सो तुमने जीती प्रभू । जलसे पूजं मैं तोय, मेरो रोग निवारियो॥ ओं ह्री गणमा सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिने ( मम्मन. णाण. दसण. वीर्यत्व, मुहमन. अवगाहनत्व. अगुम्लत्व. अव्याबाधव अष्टगुणसहिताय ) जन्मजगमृत्युविनाशनाय जलं निवपामति स्वाहा। सहजकर्म कलंकविनाशनम्मलभावमवामितचन्दनैः । अनुपमानगुगावलिनायकं मह जमिद्धमहं परियजय ।। हम भव आतप के मांहिं, तुम न्यारे संसारसे । कीज्यो शीतल छांह, चन्दनसे पूजा करूं॥ चन्दनं सहजभावमुनिर्मलतंदुलः. सकलदोपविशालविशोधनः । अनुपगंधसुबोधनिधानक. मह जमिद्धमह परिपूजय ॥ हम अवगुण समुदाय, तुम अनयगुणके भरे। पूजं अन्नतल्याय, दोष नाश गुण कीजियो॥अन्नतं ममयमाग्मुपुष्पमुमालया. महजकमकरंण विशाधया । परमयोगवलन वशीकृतं. मह जमिद्धमहं परि जय ।। काम अग्नि है मोहि, निश्चय शीलस्वभाव तुम। फूल चढ़ाऊं मैं तोय, मेरो रोग निवारियो । पुप्पं अकृताधमुदिव्यन वेद्यकविहिनजातजगमग्णांनकः । निरवधिप्रचुगत्मगुणालयं. महजमिद्धमहं परिपूजये ।।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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