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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
फल अतिउत्तमसों जजों (हो) वांछितफलदातार। सीमंधर जिन आदि दे, वीस विदेह मँझार ॥ श्री जिनराज हो भव, तारणतरण जिहाज ॥८॥ ओं ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थङ्करभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्व० जल फल आठों दर्व, अरघकर प्रीति धरी है। गणधरइंद्रनहूतें, थुति पूरी न करी है ॥ द्यानत सेवक जानके (हो) जगते लेहु निकार । सीमंधर जिन आदि दे, बीस विदेह मँझार ॥ श्री जिनराज हो भव, तारणतरण जिहाज ॥६॥ ओं ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थङ्करभ्योऽनयपदप्राप्तये अर्घ्य निर्व०
। अथ जयमाला। सोरठा-ज्ञान सुधाकर चंद, भविकखेतहित मेघ हो। भ्रमतमभान अमंद, तीर्थकर बीमों नमः ।
चौपाई १६ मात्रा। मीमंधर सीमंधर स्वामी, जुगमंधर जुगमंधर नामी । बाहुबाहु जिन जगजन तारे, करम सुबाहु बाहुबल दारे॥१॥ जात सुजातं केवलज्ञानं, स्वयंप्रभू प्रभु स्वयं प्रधानं । ऋषभानन ऋपि भानन दोपं, अनंतवीरज वीरजकोषं ॥२॥