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________________ ३८ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह सौरीप्रभ सौरीगुणमालं, सुगुण विशाल विशाल दयालं । वज्रधार भव गिरिवजर हैं, चंद्रानन चंद्रानन वर हैं ॥३॥ भद्रबाहु भद्रनिके करता, श्रीभुजंग भुजंगम भरता । ईश्वर सबके ईश्वर छाजे, नेमिप्रभु जस नेमि विराजै ॥४॥ वीरसेन वीरं जग जान, महाभद्र महाभद्र वखाने । नमों जसोधर जसघरकारी, नमों अजितवीरज बलधारी।।५।। धनुष पांचस काय विराजे, आयु कोडि पूरब सब छाजै। समवशरण शोभित जिनराजा, भवजलताग्नतरन जिहाजा॥६॥ सम्यक रत्नत्रयनिधिदानी, लोकालोक प्रकाशक ज्ञानी । शतइन्द्रनिकरि वंदित सोहैं, सुरनर पशु सबके मन मोहैं ।।७।। दाहातुमको पूर्जे बंदना, करै धन्य नर सोय । 'द्यानत' सरधा मन धरै, सो भी धरमी होय ॥ ओं ह्रीं विद्यमानविशतितीर्थङ्करभ्या महाघ निवपामीति म्वाहा ।। ___ विद्यमान बीस तीर्थङ्कगेका अर्थ उदकचंदनतंदुलपुष्पकैश्चरुसुदीपसुधृपफलाकः । धवलमंगलगानरवाकुले जिनगृहे जिनराजमह यजे।। ___ओं ह्रीं श्री सीमंधरयुग्मंधरबाहु सुबाहुसंजातस्वयंप्रभऋपिभानन अनन्तवीय सूर्यप्रभविशालकीर्तिवज्रधरचंद्रानन भद्रबाहुभुजंगमईश्वरनेमिप्रभवीरसेनमहाभद्रदेवयशअजितवीर्यनि विशनिविद्यमानतीर्थङ्करेभ्योऽर्घ निर्वपार्माति स्वाहा ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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