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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। दश अष्ट महाभाषा समेत, लघुभाषा सात शतक सुचेत ॥४॥ सो स्याद्वादमय सप्तभंग, गणधर गंथे बारह सुअंग । रवि शशि न हरै सो तम हराय, सो शास्त्र नमों बहु प्रीति ल्याय ॥५॥ गुरु आचारज उवझाय साधु, तन गमन रतनत्रयनिधि अगाध । संसारदेह वैराग्य धार, निरवांछि तपैं शिवपद निहार ॥६॥ गुण छत्तिस पच्चिस आठवीस, भवतारन तरन जिहाज ईस । गुरु की महिमा वरनी न जाय, गुरुनाम जपों मनवचनकाय ॥७॥
सोरठाकीजै शक्ति प्रमान, शक्ति बिना सरधा धरै । द्यानत सरधावान, अजर अमरपद भोगवै ॥८॥