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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो महार्घं निर्वपामीति स्वाहा । दोहा श्री जिनके परसाद तें सुखी रहें सब जीव । यातें तन मन वचन तैं सेवो भव्य सदीव | इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत् । तीस चौबीसीका ३३ द्रव्य आठों जु लीना है, अर्घ करमें नवीना है । पूजतां पाप छीना है, भानुमल जोर कीना है । दीप अढ़ाई सरस राजै, क्षेत्र दश ताविषै छाजै । सातशत बीस जिनराजै, पूजतां पाप सब भाजै ॥ १ ॥ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत दश क्षेत्रके विषै तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रभ्योऽधं निर्वपामीति स्वाहा ||१|| सूचना- आगे जिस भाई को निराकुलता हो, वह नीचे लिखे अनुसार बीस तीर्थकरोंकी भाषा पूजा करें। यदि स्थिरता न हो तो इस पूजा के आगे में जो अर्घ लिखा है उसको पढ़कर चढ़ा देवे । श्रीविदेहक्षेत्र बीस तीर्थंकर पूजा । द्वीप अढ़ाई मेरु पन, अरु तीर्थंकर बीस । तिन सबकी पूजा करू ं, मनवचतन धरि सीस ॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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