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________________ २८ श्री जैन पूजापाठ संग्रह। दोहामलिन वस्तु हरलेत सब, जल स्वभाव मलछीन । जासौं पूनौं परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥१॥ श्रओं ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्व०॥५।। जे त्रिजग उदर मँझार प्राणी तपत अति दुद्धर खरे। तिन अहितहरन सुवचन जिनके, परम शीतलता भरे । तसु भ्रमर लोभित घ्राण पावन सरस चंदन घमि सर्च । अरहंत श्रुतसिद्धांत गुरु निरग्रन्थ नित पूजा रचे ॥१॥ दोहाचंदन शीतलता कर, तपत वस्तु परवीन । जामों पूनौं परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥२॥ ओं ही देवशास्त्रगुरुभ्यः संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्व ।।२।। यह भवसमुद्र अपार तारण, के निमित्त सुविधि ठई। अति दृढ़ परमपावन जथारथ भक्ति वर नौका सही ।। उज्जल अखंडित सालि तंदुल पुंज धरि त्रयगुण जचं । अरहंत श्रुतसिद्धांत गुरु निरग्रन्थ नित पूजा रचे ॥१॥ दोहातंदुल सालि सुगंध अति, परम अखंडित वीन । जासों पूजौं परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन । ३।। ओं ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतानिपामीति स्वाहा ॥ जे विनयवंत सुभव्य उर अंबुजप्रकाशन भान हैं। जे एक मुख चारित्र भाषत त्रिजगमाहिं प्रधान हैं।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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