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________________ भी जैन पूजापाठ संग्रह। २७ देवशास्त्रगुरु भाषा पूजा अडिल्लछन्द । प्रथम देव अरहंत सुश्र त सिद्धांतजू । गुरुनिरपथ महन्त मुकतिपुरपंथ जू ॥ तीन रतन जगमांहि सो ये भवि ध्याइये। तिनकी भक्रिप्रसाद परमपद पाइये ॥१॥ दोहा - पूजौं पद अरहंतके पूजौं गुरुपद सार । पूजौं देवी सरस्वती, नितप्रति अष्टप्रकार ॥१॥ ___ओं ह्रीं देवशास्त्रगुरुमगृह ! अत्रावतरावतर. संवौषट पाहाननं। ओं ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ, ठः ठः स्थापनं । ओं ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट मन्निधिकरणं। गीता छन्द। सुरपति उरगनरनाथ तिनकर, बन्दनीक सुपदप्रभा । अति शोभनीक सुवरण उज्वल, देखि छवि मोहित सभा । वर नीर क्षीरसमुद्रघटभरि अग्रतसु बहुविधि नचं । अरहंत श्रुतसिद्धांत गुरु निरग्रन्थ नित पूजा रचं ॥१॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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