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श्री जेन पूजा-पाठ संग्रह लहि कुंद कमलादिक पहुप, भव भव कुवेदनसों वचं । अरहंत श्रुतसिद्धांत गुरु निरग्रन्थ नित पूजा रचूं । १।।
दोहाविविधभांति परिमल सुमन, भ्रमर जास आधीन ।
जासों पूजौं परमपद देव शास्त्र गुरु तीन । ४॥ ओं ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्य: कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निव० ॥४॥
अतिसबल मदकंदपं जाको क्षुधाउरग अमान है। दुस्मह भयानक तासु नाशनको सु गरुड़ समान है। उत्तम छहों रसयुक्त नित, नवेद्य करि घृतमें पचं । अरहंत श्रुतसिद्धांत गुरु निरग्रन्थ नित पूजा रचूं ॥१॥
दाहानानाविधि संयुक्तरस, व्यंजनसरस नवीन ।
जासों पूजौं परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥५॥ ओं ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यः सुधारोगविनाशनाय नवयं निर्व० ॥५॥ जे त्रिजगउद्यम नाश कीने, माहांतामर महाबली । तिहिं कर्मघाती ज्ञानदीपप्रकाशजोतिप्रभावली ॥ इह भांति दीप प्रजाल कंचनके सुभाजनमें खर्च । अरहंत श्रुतसिद्धांत गुरु निरग्रन्थ नित पूजा रचूं ॥१॥
दाहा
स्वपरप्रकाशक जोति अति, दीपक तमकरि हीन । जासों पूजौं परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥६॥