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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह (पुष्पांजलि ) पंचकल्याणक अर्घ उदकचंदनतंदुलपुष्पकैश्चरुसुदीपसुधूपफलापकः । धवलमंगलगानरवाकुले जिनगृहे कल्याणमहं यजे ॥१॥ ___ओं ह्रीं श्रीभगवतो गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकेभ्योऽध्य निर्वपामीति स्वाहा ||१|| ____पंचपरमेष्ठी का अर्थ उदकचंदनतंदुलपुष्पकैश्चरुसुदीपसुधूपफलाः । धवलमंगलगानरवाकुले जिनगृहे जिनइष्टमहं यजे ॥२॥ ओं ह्रीं श्री अरहंतसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्योऽध्य निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ यदि अवकाश हो, तो यहांपर सहस्रनाम पढ़कर दश अर्घ देना चाहिये । नहीं तो नीचे लिखा श्लोक पढ़कर एक अर्घ चढ़ाना चाहिये । उदकचंदनतंदुलपुष्पकैश्चरुसुदीपसुधूपफलाघकैः । धवलमंगलगानरवाकुले जिनगृहे जिननाम अहं यजे ॥३॥ ओं ह्रीं श्री भगवज्जिनसहस्रनामभ्योऽय निर्वपामीति स्वाहा । स्वस्ति मंगल श्रीमजिनेंद्रमभिवंद्य जगत्त्रयेशं स्याद्वादनायक-मनंतचतुष्टयाहम् । श्रीमूलसंघसुदृशां सुकृतैकहेतु जैनेंद्रयज्ञविधिरेष मयाऽभ्यधायि ॥१॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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