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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह | डरे कर्म महारिपु जोर, एक ना कान मन मान्या दुख देहिं काहूसों नाहिं कबहूं इतर निगोद, कबहूं नके दिखावें । सुरनर पशुगति माहिं, बहुविधि नाच नचावें ॥ प्रभु ! इनके परसंग, भव भव माहिं बुरे जी | जे दुख देखे देखे देव! तुममों नाहिं दुरे जी || एक जनमकी बात कहि न सकों सुनि स्वामी । परजाय, जानत अन्तरयामी || अनाथ, ये मिलि दुष्ट घनेरे । तुम अनन्त मैं तो एक कियो बहुत बेहाल, ज्ञान महानिधि दृटि रंक निवल सुनियो माहिब मेरे || करि डास्थो । पास्यो । पायनि बेड़ी इन ही तुम मुझ माहिं, हे जिन ! अन्तर पाप पुण्य पुण्य मिल दोड, मिल दोड़, तन कारागृह माहि मोहि दिये इनको नेक विगार में कछु नाहि दुख र विन कारन जगवंद्य ! बहुविधि अब आयो तुम पास सुनि कर, नीति निपुन महाराज कीज दुष्टन देहु निकार, साधुनको विनवै भूधरदास हे प्रभु! ढील ३१३ करें जी 1 जी ॥ डारी | भारी || कियो जी । लियो जी ।। तिहारो । हमारो || लीज 1 सुजम न्याय रख न कीजै ॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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