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________________ ३१४ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह । पं० भूदरकृत गुरु स्तुति ___राग भरथरी-दोहा ते गुरु मेरे मन बमो, जे भवजलधि जहाज । आप तिरै पर तारही, ऐसे हैं ऋषिराज ॥ ते गुरु मेरे मन बसो, जे भवजलधि जहाज । आप तिरै पर तारही, ऐसे हैं ऋषिराज ॥१॥ मोह महारिपु जानिक, छोड्यो सब घरबार । होय दिगम्बर वन बसे, आतम शुद्ध विचार ।। ते गुरु मेरे मन बसो, जे भवजलधि जहाज । आप तिर पर तारही, ऐसे हैं ऋषिराज ॥२॥ रोग उरग बिल वपु गिण्यो, भोग भुजङ्ग समान । कदली तरु संसार है, त्यागो सब यह जान ।। ते गुरु मेरे मन वसो, जे भव जलधि जहाज । आप तिरै पर तारही, ऐसे हैं ऋषिराज ॥३॥ रतनत्रय निधि उर धरै, अरु निरग्रन्थ त्रिकाल । मारयो काम खबीसको, स्वामी परम दयाल ॥ ते गुरु मेरे मन बसो, जे भवजलधि जहाज । आप तिरै पर तारही, ऐसे हैं ऋषिराज ॥४॥ पंच महाव्रत आचरें, पांचों समिति समेत । तीन गुपति पाले सदा, अजर अमर पद हेत ।।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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