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________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। ३११ पशु नारक नर सुरगति मंझार, भव धरधर मस्यो अनन्तवार।। अब काललब्धि बलतें दयाल, तुम दर्शन पाय भयो खुशाल । मन शान्त भयो मिटि सकल द्वंद, चाख्यो स्वातमरस दुखनिकंद तातें अब ऐसी करहु नाथ, विछुरै न कभी तुव चरण साथ । तुम गुणगण को नहिं छेव देव, जगताग्नको तुव विरद एव॥ आतमके अहित विषय कपाय, इनमें मेरी परिणति न जाय । मैं रहूं आपमें आप लीन, मो कंगे होहूं ज्यों निजाधीन । मेरे न चाह कछु और ईश, रत्नत्रय निधि दीजे मुनीश । मुझ कारजके कारण सु आप, शिव करहु हरहु मम मोहताप ।। शशि शांति करन तपहरण हेत, स्वयमेव तथा तुम कुशल देत। पीवत पियूप ज्यों गेग जाय, त्यों तुम अनुभवतै भव नशाय ।। त्रिभुवन तिहुँकालमंझार कोय,नहिं तुम बिन निजसुखदाय होय मो उर यह निश्चय भयो आज, दुखजलधि उतारन तुम जिहाज तुमगुणगणमणि गणपती, गणत न पावहिं पार । 'दौल' स्वल्पमति किमि कहै, नम त्रियोग संभार ।। इति पं० दौलतगम कृत स्तुनि । पं० बुधजन कृत स्तुति । प्रभु पतितपावन में अपावन, चरन आयो शरणजी । यो विग्द आप निहार स्वामी, मेट जामन मरण जी ।।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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