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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह
___ पद्धरि छन्द । जय वीतगग विज्ञानपूर, जय मोहतिमिरको हरन सूर । जय ज्ञान अनन्तानन्तधार, दृग सुख बीरजमंडित अपार ।। जय परमशांत मुद्रासमेत, भविजनको निज अनुभूति हेत। भवि भागनवश जोगेवशाय, तुम धुनि ह्व सुनि विभ्रम नशाय॥ तुम गुण चिन्तत निज पर विवेक, प्रगटे विघटे आपद अनेक । तुम जगभूषण दृषण वियुक्त, सब महिमायुक्त विकल्प मुक्त ।। अविरुद्ध शुद्ध चेतन स्वरूप, परमातम परम पावन अनूप । शुभ अशुभ विभाव अभाव कीन, स्वभाविक परिणतिमयअधीन अष्टादश दोप विमुक्त धीर, स्वचतुष्टयमय राजत गंभीर । मुनि गणधरादि सेवत महंत, नवकेवललब्धि रमा धरंत ॥ तुम शासन सेय अमेय जीव, शिव गये जाहिं जहैं सदीय । भवसागरमें दुखकार वारि, तारनको ओरन आप टारि ॥ यह लखि निज दुखगद हरण काज तुमही निमित्तकारण इलाज। जाने तातै मैंशरण आय, उचरौं निज दुख जो चिर लहाय ।। मैं भ्रम्यो अपनयो विसरि आप, अपनाये विधि फल पुण्य पाप। निजको परको करता पिछान, परमें अनिष्टता इष्ट ठान ।।
आकुलित भयो अज्ञान धारि, ज्यों मृग मृगतृष्णा जानि वारि। तन परिणतिमें आपो चितार, कबहुं न अनुभवो स्वपद मार ।। तुमको बिन जाने जो कलेश, पाये सो तुम जानत जिनेश ।