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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
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छिनमें तेसम्पतिलहैं, चिन्ताभय बिनसाहि॥४६ महामत्त गजराज और मृग राज दवानल । फनपति रण परचण्ड नीरनिधि रोग महाबल ॥ बन्धन ये भय आठ डरपकर मानों नाशै । तुम सुमरत छिनमाहिं, अभय थानक परकाशै॥ इस अपार संसार में, शरन नाहिं प्रभु कोय । यातें तुम पदभकको भनि सहाई होय ॥४७॥ यह गुनमाल विशाल नाथ त म गुणन सवारी । विविध वर्णमय पुहुप, गंथ में भनि विथारी ॥ जे नर पहिरें कण्ठ भावना मनमें भावै । मानतुग ते निजाधीन, शिवलक्ष्मी पावै ॥ भाषा भक्तामर कियो हेमराज हितहेत । जे नर पढ़े सुभावसों ते पावै शिवखेत ॥४८॥
इनि। पं० दौलतराम कृत स्तुति सकल ज्ञेय ज्ञायक तदपि, निजानंद रसलीन । सो जिनेंद्र जयवंत नित, अग्ग्जि रहमि विहीन ।।