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३०८ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह । नक चक्र मगरादि मच्छकरि भय उपजावै । जामैं वड़वा अग्न दाहते नीर जलावै ॥ पार न पा जास थाह नहिं लहिये जाकी। गरजै अतिगंभीर, लहर की गिनति न ताकी ॥ सुख सौं तिरे समुद्र को, जे तुमगुनसुमराहिं । लोलकलोलनके शिखर, पार यान ले जाहि ॥४४ महा जलोदर रोग, भार पीड़ित नर जे हैं । वात पित्त कफ कुष्ट आदि जो रोग गहै हैं । सोचत रहें उदास नाहिं जीवन की आशा । अति घिनावनी देह, धरे दुर्गंधि निवासा ॥ तुम पदपंकजधूलको, जो लावै निज अंग। ते नीरोग शरीर लहि, छिनमें होय अनंग ॥४५॥ पांव कंठतें जकर बांध सांकल अति भारी । गाढी वेड़ी पैरमांहि, जिन जांघ विदारी ॥ भूख प्यास चिन्ता शरीर दुग्व जे विललाने । सरन नाहिं जिन कोय भूपके बंदीखाने ॥ तुम सुमरत स्वयमेव ही बन्धन सब खुल जांहि ।