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श्री जैन
पूजा-पाठ संग्रह |
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रक्तनयन फुंकार, मारविषका उगलता ॥ फणको ऊंचो करें, वेग ही सन्मुख धाया । तब जन होय निःशंक देख फणिपतिको आया ॥ जो चांपे निज पगतलें, व्यापै विष न लगार । नागदमन तुम नामकी है जिनके आधार ॥४१ जिस रनमाहिं भयानक रखकर रहे तुरंगम । घनसे गज गरजाहिं मत मानों गिरि जंगम ||
ति कोलाहल माहिं वात जहं नाहिं सुनीजै । राजन को परचंड, देख वल धीरज छीजे || नाथ तिहारे नाम निमांहि पलाय | ज्यों दिनकर परकाश अन्धकार विनशाय ॥ ४२ मारै जहां गयंद कुंभ हथियार विदारे । उमगे रुधिर प्रवाह वेग जलसम विस्तारै ॥ होय तिरन असमर्थ महाजोधा बलपूरे । तिस रनमें जिन तोय भक्त जे हैं नर सूर || दुर्जय रिकुल जीतके, जय पायें निकलंक । तुम पढ़ पंकज मन वस ते नर सदा निशंक ॥ ३