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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। ऐरावत सो प्रवल, सकल जन भय उपजावै ॥ देखिगयंद न भय करै तुम पदमहिमा लीन । विपतिरहित संपतिसहित, वरतेंभक अदीन॥३८ अति मदमत्तगयंद कुंभथल नखन विदारै । मोती रत्न समेत डारि भूतल सिंगारे ॥ बांकी दाढ बिशाल, वदनमें रसना लोले । भीमभयानकरूप देखि जन थरहर डोले ॥ ऐसे मृगपति पगतले, जो नर आयो होय । शरण गये तुम चरणकी, बाधा कर न सोय॥३६॥ प्रलयपवनकर उठी आग जो तास पटंतर । बमें फुलिंग शिखा उतंग परजलें निरंतर ॥ जगत समस्त्त निगल्ल भस्मकर हैगी मानों । तड़तड़ाट दवअनल, जोर चहंदिशा उठानों ॥ सा इक छिनमें उपशमें, नामनीर तुम लेत । होय सरोवर परिनमैं विकसित कमल समेत ॥४० कोकिलकंठसमान, श्याम तन क्रोध जलंता ।