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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। स्वर्ग मोक्ष मारग संकेत, परम धरम उपदेशन हेत। दिव्य बचन तुम विरै अगाध, सब भाषा गर्भित हितसाध ॥ ३५ ।
दोहा। विकसित सुवरन कमलदुति, नखदुति मिलि चमकाहिं। तुम पद पदवी जहँ धगे. तहँ सुर कमल रचाहिं ॥ ३६ ॥ ऐसी महिमा तुम विष,
और धरै नहिं कोय। सूरज में जो जोत है, नहिं तारागण होय ॥ ३७॥
पटपद। मदअवलिप्तकपोल-मूल अलिकुल झंकारें । तिन सुन शब्द प्रचंड क्रोध उद्धत-अति धारें ॥ कालवरन विकराल, कालवत सनमुख आवे ।