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________________ श्री जन पूजा-पाठ संग्रह . १७ ऐसे विमल परिणाम होते अशुभ नसि शुभबंध तैं । विधि अशुभ नसि शुभबंधते ह्र शर्म सब विधि तासतें ॥७॥ पावन मेरे नयन, भये तुम दरसते । पानि भये तुम चरननि परसते ॥ पावन मन ह गयो तिहारे ध्यानतें । पावन रसना मानी, तुम गुण गानतें ॥ पावन भई परजाय मेरी, भयो मैं पूरणधनी । मैं शक्तिपूर्वक भक्ति कीनी, पूर्णभक्ति नहीं बनी ॥ धन धन्न ते बड़भागि भवि तिन नीव शिवघरकी धरी । वर क्षीरसागर आदि जलमणिकंभ भर भक्ती करी ॥८॥ विघनसघन-वनदाहन-दहन प्रचंड हो । मोहमहातमदलन प्रवल मारतण्ड हो । ब्रह्मा विष्णु महेश, आदि संज्ञा धरो । जगविजयी जमराज नाश ताको करो ॥ आनन्दकारण दुखनिवारण, परममंगल-मय सही । मोसो पतित नहिं और तुमसो, पतित-तार सुन्यो नहीं । चिंतामणी पारस कल्पतरु, एकभव सुखकार ही । तुम भक्तिनवका जे चढ़े ते, भये भवदधिपार ही ॥९॥
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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