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श्री जैन पूजापाठ संग्रह। जन्म जरा मृति अरति शोक विस्मय नसे ।
राग गेप निद्रा मद मोह सबै खसे ॥ श्रमविना श्रमजलहित पावन अमल ज्योतिस्वरूपजी । शरणागतनिकी अशुचिता हरि, करत विमल अनूपजी ॥ ऐसे प्रभू की शांतिमुद्रा को न्हवन जलतें करें । 'जम' भक्तिवश मन उक्तित हम भानुढिग दीपक धरै ॥५॥
तुमतो सहज पवित्र यही निश्चय भयो । तुम पवित्रता हेत नहीं मजन ठयो । मैं मलीन रागादिक मलते ह रह्यो ।
महामलीन तनमें वसुविधिवश दुख सह्यो । त्रीत्यो अनंतो काल यह मेरी अशुचिता ना गई । तिम अशुचिताहर एक तुम ही भरहु बांछा चित ठई ॥ अब अष्टकर्म विनाश सब मल रोषरागादिक हगै । तनरूप कारागेहत उद्धार शिव वासा करो ॥६॥
मैं जानत तुम अष्टकर्म हरि शिव गये । आवागमन विमुक्त रागवर्जित भये ॥ पर तथापि मेरो मनोरथ पूरत मही ।
नयप्रमानतें जानि महा साता लही ॥ पापाचरण तजि न्हवन करता चित्तमें ऐसे धरू । साक्षात श्रीअरहंतका मानों न्हवन परसन करू ।