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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
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चौपाई १५ मात्रा। तुम जिन पूरनगुनगन भरे, दोष गर्वकरि तुम परिहरे।
और देवगण आश्रय पाय, स्वप्न न देखे तुम फिर आय ॥२७॥ तरु अशोकतर किरन उदार, तुमतन शोभित है अविकार । मेघनिकट ज्यों तेज फुरंत, दिनकर दिपै तिमिर निहनंत ॥२८॥ सिंहासन मणिकिरन विचित्र, तापर कंचनवरण पवित्र । तुम तन शोभित किरनविथार, ज्यों उदयाचल रवितमहार ॥ २६ ॥ कुंदपुहुप सितचमर दुरंत, कनक वरन तुमतन शोभंत । ज्यों सुमेरुतट निर्मल कांति, झरना झरै नीर उमगांति ॥ ३० ॥