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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। पुरान हो पुमान हो पुनीत पुन्यवान हो, कहैं मुनीश अन्धकारनाश को सुभान हो । महंत तोहि जानके न होय वश्य काल के, न और मोहि मोखपंथ देय तोहि टालके ॥२३॥ अनंत नित्य चित्तकी अगम्य रम्य आदि हो, असंख्य सर्वव्यापि विष्णु ब्रह्म हो अनादि हो। महेश कामकेतु योग ईश योग ज्ञान हो, अनेक एक ज्ञानरूप शुद्ध संतमान हो ॥२४॥ तुही जिनेश बुद्ध है सुबुद्धिके प्रमानतें, तुही जिनेश शंकरो जगत्त्रयी विधानतें। तुही विधात है सही सुमोखपंथ धारतें, नरोत्तमो तुही प्रसिद्ध अर्थक विचारतें ॥२५॥ नमों करू जिनेश तोहि आपदा निवार हो, नमों करू सुभूरि भूमिलोकके सिंगार हो । नमों करू भवाब्धि नीरराशिशोष हेतु हो, नमों करू महेश तोहि मोखपंथ देतु हो ॥२६॥