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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
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इकटक जन तुमकों अविलोय, अवरविषैरति करै न सोय । कोकरिक्षीरजलधिजल पान, क्षारनीर पीवै मतिमान ॥ ११ ॥ प्रभु तुम वीतराग गुणलीन. जिन परमाणु देह तुम कीन । हैं तितने ही ते परमाण, यातें तुम सम रूप न आन ॥ १२ ॥ कहँ तुम मुख अनुपम अविकार, सुरनरनागनयनमनहार । कहां चंद्रमंडल सकलंक, दिनमें ढाक पत्र सम रंक ॥ १३ ॥ पूरनचन्द जाति छविवंत, तुमगुन तीनजगत लंघेत । एक नाथ त्रिभुवन आधार, तिन विचरतको करै निवार ॥ १४ ॥