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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह |
तुमजस जंपत जन छिनमाहिं, जनम जनमके पाप नशाहिं । ज्यों रवि उगे फटै ततकाल, लिवत नील निशातमजाल ॥ ७ ॥ तुव प्रभावतें कहूं विचार, होसी यह थुति जनमनहार । ज्यों जल कमलपत्र परे, मुक्ताफलकी द्युति विस्तरै ॥ ८ ॥
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तुम गुनमहिमा हतदुखदोष, सो तो दूर रहो सुखपोष । पापविनाशक है तुम नाम, कमलविकाशी ज्यों रविधाम ॥ ६ ॥
नहिं अचंभ जो होहिं तुरंत, तुमसे तुमगुण वरणत संत । जो अधीनको आपसमान, करें न सो निंदित धनवान ॥ १० ॥