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श्री जैन
पूजा-पाठ संग्रह |
विबुधवंद्यपद में मतिहीन, होय निलज्ज थुति- मनसा कीन । जलप्रतिबिंब बुद्धको गहै, शशिमंडल वालक ही चहे ॥ ३ ॥
गुनसमुद्र तुमगुन अविकार. कहत न सुरगुरु पावें पार | प्रलयपवन उद्धत जलजंतु. जलधि तिरैको भुजबलवंत ॥ ४ ॥
सो में शक्तिहीन थुति करू भक्तिभाववश कलुनहि डरु । ज्यों मृगि निजसुतपालन हेत, मृगपतिसन्मुख जाय अचेत ॥ ५ ॥
मैं शठ सुधीहंसन का धाम, मुझ तव भक्ति - बुलावे राम । ज्यों पिक अंकलीपरभाव, मधुऋऋतु मधुर करें आराव ॥ ६ ॥
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