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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
३ तृतीय मामायिक भावकर्म । सब जीवनमें मेरे ममताभाव जग्यो है, सब जिय मोमम ममता गखो भाव लग्यो है । आत गैद्र द्वय ध्यान डांडि करिहं मामायिक, संजम मो कब शुद्ध होय यह भाववधायक ।।११।। पृथिवी जल अरु अग्नि बाय च उकाय वनस्पति, पंचहि थावरमांहि तथा त्रम जीव वमें जित । वेइन्द्रिय तिय चउ पंचेंद्रियमांहि जाच मब, तिनत क्षमा कगऊं मुझपर क्षमा कंग अब ।।१२।। इस अवमग्में मेरे मन मम कंचन अरु तृण, महल ममान समान शत्रु अरु मित्रहि सम गण । जामन मग ममान जानि हम ममता कीनी, सामायिकका काल जितं यह भाव नवीनी ।।१३।। मेरो है इक आतम नामें ममत जु कीनो..
और मबै मम भिन्न जानि ममता रम भीनो । मात पिता सुत बंधु मित्र तिय आदि मत्र यह. मोत न्यारे जानि जथारथ रूप कग्यो गह ।।१४।। मैं अनादि जगजालमांहि फंमि रूप न जाण्यो. एकेद्रिय वे आदि जंतुको प्राण हगण्यो। ते सब जीवसमूह सुनो मंग यह अग्जी