SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। २६३ भवभवको अपराध हिमा कीज्यो कर मरजी || १५ || ४ चतुर्थ स्तवनकर्म | नमीं ऋषभ जिनदेव अजित जिन जीति कर्मको, संभव भवदुखहरण करण अभिनंद शर्मा को । सुमति सुमति दातार तार भवसिंधु पार कर, पद्मप्रभ पद्माभ भानि भवति प्रीति घर ||१६|| श्रीमुपायं कृतपाश नाश भव जाम शुद्धकर, श्रीचंदप्रभ चंद्रकांतियम देह कांतिधर | पुष्पदंत दमि दोपकोश भविषोप पहर, शीतल शीतल करण हरण भवताप दोपकर ||१७|| श्रयरूप जिनश्रेय ध्येय नित सेय भव्यजन, वासुपूज्य शतपूज्य वासवादिक भवभयहन । विमल विमलमति देन अंतगत है अनंत जिन, धर्मशमशिवकरण शांतिजिन शांतिविधायिन || १८ || कंथ कंमुख जीवपाल अरनाथ जाल हर मल्लि मल्लमम मोहमल्ल मारण प्रचार धर | मुनिसुव्रत व्रतकरण नमत सुर संघहि नमि जिन, नेमिनाथ जिन प्रेमि धर्मस्थमांहि ज्ञानधन ||१९|| पार्श्वनाथ जिन पायं उपलमम माझ रमापति, बर्द्धमान जिन नमूं बम् भवदुखकमंत ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy