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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
कोटि भवांतग्मांहि मिलन दुर्लभ मामायिक, धन्य आज में भयो जोग मिलियो सुखदायक ॥११॥ हे मर्वज्ञजिनेश! किये जे पापजु मैं अब, ते मब मनवचकाय योगकी गुप्ति बिना लभ ।
आप समीप हजूर मांहि में खड़ो बड़ो मब, दोष कहूं मो सुनो कगे नट दग्व देहिं जब ।।२।। क्रोध मान मद लोभ मोह मायावशि प्रानी, दुग्यमाहित जे किये दया तिनकी नहिं पानी । विना प्रियांजन एकेंद्रय विति च उपंचेंद्रिय, आप प्रमादहि मिट दाप जो लग्यो मोहि जिय ॥३॥ आपममें इकठोर थाप करि जे दुख दीने, पेलि दिए पगतलं दाविकरि प्राण हगन ।
आप जगतके जीव जितिन सबके नायक, अरज करू में सुनो दोप मेटो दुखदायक ।।४।। अंजन अादिक चोर महाघनघोर पापमय, तिनके जे अपराध भये ते क्षमा क्षमा किय । मेरे जे अब दोप भये ते क्षमहु दयानिधि, यह पडिकोणो कियो आदि पटकम मांहि विधि ॥५॥
द्वतीय प्रत्याख्यान कर्म। इसके आदि वा अन्त में आलोचना पाठ बोलकर फिर
तीसरे मामायिक कर्मका पाठ करना चाहिये ।