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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह ।
सब दोषरहित करि स्वामी. दुखमेटहु अंतरजामी ॥ ३२ ॥ इन्द्रादिक पदवी न चाहूं, विषयनिमें नाहिं लुभाऊं । रागादिक दोष हरीज. परमातम निजपद दीजे ॥ ३३ ॥ दोहा । दोषरहित जिनदेवजी, जिनपद दीज्यो मोय । सब जीवन के सुख बढ़, आनंद मंगल होय ॥ अनुभव माणिक पारखी, 'जौहरी' आप जिनंद । ये ही वर माहि दीजिये, चरगाशरण आनंद ॥
इत्याशीर्वादः ।
सामायिक पाठ भाषा
' प्रतिक्रमण कम !
काल अनंत भ्रम्यो जगमें महिये दुख भारी, जन्ममरण नित किये पापको हूँ अधिकारी ।
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