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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। फल भुंजत जियदुग्व पावै, वचतें कैसे करि गावै ॥ २८ ॥ तुम जानत केवल ज्ञानी. दुख दूर करो शिवथानी । हम तो तुम शरण लही है. जिन तारनविग्द सही है ॥ २६ ॥ इक गांवपती जो होवे. सो भी दुखिया दुग्व ग्वावै । तुम तीन भुवनके स्वामी, दुख मेटहु अंतरजामी ॥ ३० ॥ द्रोपदिको चीर बढ़ायो, सीताप्रति कमल रचायो । अंजन से किये अकामी, दुखमेटो अंतरजामी ॥ ३१ ॥ मेरे अवगुन न चितागे. प्रभु अपनो विरद सम्हारो ।