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श्री जैन
पूजा-पाठ संग्रह |
कछु सुधिबुधि नाहिं रही है. मिथ्यामति छाय गयी है ॥ १६ ॥
लीनी.
मरजादा तुमडिंग ताह में दोष जु कीनी ।
भिन भिन अब कैसे कहिये, तुम ज्ञानविषं सब पइये ॥ १७ ॥ हा हा ! मैं दृट अपराधी, त्रस जीवनराशि विराधी । थावर की जतन न कीनी. उरमें करुणा नहिं लीनी ॥ १८ ॥ पृथिवी व खोद कराई. महलादिक जागां चिनाई । पुन विनगाल्यां जल ढोल्यो, पंग्वा पवन विलोल्या ॥ १६ ॥
हा हा! मैं अदयाचारी. बहु हरितकाय जु विदारी ।
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