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श्री जैन पूजा-पाठसंग्रह |
संज्वलन चौकरी गुनिये, सब भेद जु षोड़श मुनिये ॥ १२ ॥ परिहास अरतिरति शोग,
भय ग्लानि निवेद संयोग । पनवीस जु भेद भये इम, पाप किये
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इनके वश निद्रावश शयन कराई, सुपनेमधिदोष लगाई ।
फिर जागि विषयवन धायो, नानाविध विषफल खायो ॥ १४ ॥
हम ॥ १३ ॥
कियेऽहार निहारविहारा,
इनमें नहिं जतन विचारा |
चिन देखी धरी उठाई,
विन शोधी वस्तु जो खाई ॥ १५ ॥ तब ही परमाद सतायो. बहुविध विकलप उपजायो ।