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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
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आरंभपरिग्रह भीनो. पनपाप जु या विधि कीनो ॥ ८ ॥ सपरस रसना घ्राननको, चखु कान विषयसेवनको । बहुकरम किये मनमाने, कछु न्याय अन्याय न जाने ॥ ६ ॥ फल पंच उदंबर ग्वाये, मधु मांस मद्य चिनचाहे । नहिं अष्टमूलगुणधार्ग, सेये कुविसन दुग्वकार्ग ॥ १० ॥ दुइवीस अभग्व जिनगाये. सो भी निशदिन भंजाये । कछु भेदाभेद न पाया, ज्यों त्योंकरि उदर भरायो ॥ ११ ॥ अनंतानु जु बंधी जाना, प्रत्याग्व्यान अप्रत्याख्यानो ।