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२८२ श्री जैन पूजा-पाठ मंग्रह । कृत कारित मोदन करिके. क्रोधादि चतुष्टय धरिक ॥ ४ ॥ शत आट जु इमि भेदनने, अघ कीने परछेदनते। तिनकी कहुं कोलों कहानी, तुम जानत केवल ज्ञानी ॥ ५ ॥ विपरीत एकांत विनयके. संशय अज्ञान कुनयके । वश होय घोर अघ कीने, वचनै नहिं जाय कहीने ॥ ६ ॥ कुगुग्नकी सेवा कीनी. कंवल अदयाकरि भीनी । याविधि मिथ्यात भ्रमायो. चहूंगति मधि दोष उपायो ॥ ७ ॥ हिंसा पुनि झुट जु चोरी, परवनितासों दृग जोग।