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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
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आलोचना पाठ। यह आलोचनापाठ सामायिक पाठमें प्रथमका प्रतिक्रमण कम है उस कमके आदि वा अन्तम वालना चाहिय ।
दाहा। वंदों पांचों परमगुरु, चौबीसों जिनगज । करू शुद्ध आलोचना, शुद्धिकरनके काज ॥१॥
मी छंद चौदह मात्रा। सुनिये जिन अरज हमारी. हम दोष किये अति भार्ग । तिनकी अव निवृत्ति काजा, तुम सरन लही जिनराजा ॥ २ ॥ इक वे ते चउ इन्द्री वा, मनरहित सहित जे जीवा । तिनकी नहिं करुणा धारी, निरदइ है घात विचारी ॥ ३ ॥ समरंभ समारंभ आरंभ, मन वच तन कीने प्रारंभ ।