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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह। यह हुक्म कियो जयपुर नरेश, सालाना मेला हो हमेश । अब जुड़न लगबहु नर उ नार, तिथि चत सुदी पूनों मंझार १२ मीना गृजर आवै विचित्र, मब वरण जुड़े करि मन पवित्र । बहु निरत करत गावे सुहाय, कोई २ घृत दीपक रह्यो चढ़ाय १३ कोइ जय जय शब्द को गंभीर, जय जय जय हे श्री महावीर। जैनी जन पूजा रचत आन, कोई छत्र चंवरके करत दान ।।१४ जिमकी जो मन इच्छा करंत, मन वांछित फल पावे तुरंत । जो कर वंदना एकवार, सुख पुत्र संपदा हो अपार ॥१५।। जो तुम चरणोंमें रखे प्रीत, ताको जगमें को सके जीत । है शुद्ध यहांका पवन नीर, जहां अति विचित्र सरिता गंभीर १६ परनमल पजा रची सार, हो भृल लेउ सजन सुधार । मेग है शमशावाद ग्राम, त्रय काल करू प्रभुको प्रणाम।१७।।
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घत्ता
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श्री वर्द्धमान तुम गुण निधान उपमा न बनी तुम चरनन की। है चाह यही नित बनी रहै अभिलाप तुम्हारे दरशन की ।। ओ ह्रीं श्री चांदन गांव महावार जिनंद्राय अर्घ ।
दोहा अष्टकर्मके दहनको पूजा रची विशाल । पढ़े सुनें जो भावसे छूटे जग जंजाल ॥१॥