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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
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अब पंचम काल मंझार आय, चांदनपुर अतिशय दई दिखाय । टीलेके अंदर बठि बीर, नित हरा गायका तुमने क्षीर ।।२।। ग्वालाको फिर आगाह कीन, जब दग्शन अपना तुमने दीन । मृरति देखी अति ही अनूप, है नग्न दिगंबर शांति रूप ॥३॥ तहां श्रावक जन बहुगये प्राय, किये दरशन करि मनवचनकाय। है चिह्न शेरका ठीक जान, निश्चय है ये श्रीवर्तमान ॥४॥ सब देशनके श्रावक जुआय, जिन भवन अनूपम दियो बनाय। फिर शुद्ध दई वेदी कराय, तुरतहि गजरथ फिर लयो मजाय ।। ५ ये देख ग्वाल मनमें अधीर, मम ग्रह को त्यागो नहीं वीर । तेरे दरशन बिन तजं प्राण, सुनिटर मेग किरपा निधान॥६॥ कीने ग्थमें प्रभु विराजमान, ग्थ हुआ अचल गिरके समान। तब तरह तरहके किये जोर, बहुतक रथ गाड़ी दिये तोड़ ।।७।। निशिमांहि स्वप्न सचिवहिं दिखात, ग्थ चल ग्वालका लगत हाथ भोरहिं झट चरण दियो बनाय, मंतोप दिया ग्वालहिं कराय॥८ करि जय जय प्रभु से करीटंग, ग्थ चल्यो फेर लागी न देर । वह निरत करत बाजे बजाई, स्थापन कीने तहँ भवन जाइ॥९।। इक दिन मंत्रीको लगा दोप, धरि तोप कही नृप खाइ रोप । तुमको जब ध्यायावहां वीर, गोलासे झट बच गया वजीर ।।१० मंत्री नृप चांदन गांव आय, दग्शन करि पूजा की बनाय । करितीन शिखर मंदिर रचाय, कंचन कलशादीने धराय॥११