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________________ १४ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह जलाभिषेक वा प्रक्षालन पाठ प्रक्षाल करते समय पढ़ना चाहिये । जय जय भगवंते सदा, मंगल मूल महान । वीतराग सर्वज्ञ प्रभु, नमो जोरि जुगपान | ढाल मंगल की. छंद अल्लि और गीता श्रीजिन जगमैं ऐसो को बुधवंत जू । जो तुम गुणवरननि करि पावै अंत जू ॥ इंद्रादिक सुर चार ज्ञानधारी मुनी । कहि न सकै तुम गुणगण हे त्रिभुवनधनी ॥ अनुपम अमित तुमगुणनिवारिध, ज्यों लोकाकाश है । किमि धेरै हम उर कोपमें सो कथगुणमणिराश है || पै निजप्रयोजन सिद्धि की तुम नाममें ही शक्ति है । यह चित्तमें सरधान यातें नाम ही में भक्ति है ||१|| ज्ञानावरणी दर्शन - आवरण भने । कर्म मोहनी अंतराय चारों हने ॥ लोकालोक विलोक्यो केवलज्ञान में Į इंद्रादिकके मुकुट नये सुरथान में || तब इंद्र जान्यो अवधितै, उठि सुरनयुत बंदत भयो ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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