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श्री जैन पूजापाठ संग्रह।
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तारिमो पर्जय नित्य अविचल. अर्थपञ्जय छनछयी। निश्चयनयेन अनंतगुण. विवहार नय वसुगुणमयी ।। वस्तुम्वभाव विभावविरहित. सुद्ध परिणति परिणयो । चिदम्पपरमानंद मंदिर. सिद्ध परमातम भयो ॥२३॥ तनुपरमाणू दामिनिवत, सब विरगए । रहे शेष नम्वकेश-रूप, जे परिणए ॥ तव हरिप्रमुख चतुरविधि, सुरगण शुभ सच्यो । मायामयि नखकेश-रहित, जिनतनु रच्यो । गचि अगर चंदन प्रमुग्ध परिमल. द्रव्य जिन जयकारियो । पदपनिन अगनिकुमार मुकुटानल, सुविध संस्कारियो ।। निर्वाणकल्याणक मु महिमा. सुनत मब सुख पावहीं । भगिण रूपचंद सुदव जिनवर. जगत मंगल गावहीं ||४|| मैं मनिहीन भगतिवस, भावन भाइया । मंगल गीतप्रबंध, सु जिनगुण गाइया ॥ जो नर सुनहिं वग्वानहिं सुर धरि गावहीं । मनवांछित फल सो नर, निह पावहीं ॥ पावहीं आठों सिद्धि नवनिधि. मन प्रतीन जो लावहीं । भ्रम भाव छुटै मकल मनके निज म्वरूप लखावही ।। पुनि हरहिं पानक टहि विधन सु होहिं मंगल नितनयं । भणि रूपचंद त्रिलोकपति. जिनदेव च उमंघहि जय ॥२५॥