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श्री जन पूजापाठ संग्रह। गनिये अठारह दाप तिनकरि रहित देव निरंजनो। नव पाम कंवललब्धिमंडिय सिवरमनि-मनरंजना ।। श्रीज्ञानकल्याणक मुमहिमा. मुनत सब सुख पावहीं । भणि रूपचंद' सुदेव जिनवर. जगत मंगल गावहीं ।।२१।।
___५-निर्वाण कल्याणक केवलदृष्टि चराचर, देख्यो १जारिसो। भव्यनि प्रति उपदेश्यो, जिनवर २तारिसो । भव-भय-भीत भविकजन, सरण आइया । रत्नत्रयलच्छन सिवपंथ लगाइया ॥ लगाइया पंथ जु भव्य पुनि प्रभु तृतिय मुकल जु पूरियो । तजि तरवां गुणथान जोग अजागपथ पग धारिया । पुनि चौदहं चौथे मुकलबल बहत्तर तरह हती। इमि घाति वसुविध कर्म पहुंच्या. समयमें पंचमगती ॥२२॥ लोकसिखर तनुवात, बलयमहँ संठियो । धर्मद्रव्यविन गमन न, जिहि आगें कियो । मयनरहित मूषोदर, अंबर जारिसो। किमपि हीन निजतनुतें, भयो प्रभु तारिसो ॥
१-जारिसो-जैसा। २-तारिसो-तैसा।