SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७) श्री जेन पूजा-पाठ मंग्रह। चांदनपुरके महावीर तोरी छवि प्यारी । प्रभु भव आताप निवार तुम पद बलिहारी ।। धृपं० ॥ पिम्ता किममिम बादाम श्रीफल लौंग मजा। श्री बद्धमान पद गख पाऊं मोक्ष पदा ।। चांदनपुरके महावीर नोग छवि प्यारी । प्रभु भव आताप निवार तुम पद बलिहारी ।। फलं० ।। जल गंध मु अक्षत पुष्प चरुवर जोर कगें । ले दीप धूप फल मेलि आगे अर्घ कगं ।। चांदनपुरके महावीर तोग छवि प्यारी । प्रभु भव आताप निवार तुम पद बलिहारी ।। अर्घ० ।। टोंक के चरणोंका अर्थ जहां कामधेनु नित आय दुग्ध जु बग्मा । तुम चग्ननि दरशन होत आकुलता जावे ।। जहां छतरी बनी विशाल तहां अतिशय भाग । हम पूजत मन वच काय तजि मंशय मारी ।। चांदनपुरके महावीर तोरी छवि प्यारी। प्रभु भव आताप निवार तुम पद बलिहारी ।। ओ ही टॉकमें स्थापिन श्री महावीर चरगोभ्या अर्घ । __टीलेके अंदर विराजमान समयका अध टीलेके अन्दर आप मोहें पदमामन ।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy