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श्री जैन
पूजा-पाठ संग्रह |
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अष्टापद पर जाय वीरनृप वीर व्रतीधर कीनों ध्यान, अचल अंग निरभंग संगतज संवतमरला एक स्थान ||८|| विषधर वंत्री करी चग्नतल ऊपर बेल चढ़ी अनिवार, युगजघा कटि बाहुवेदि कर पहुंची वक्षस्थल परमार | सिरके केश बढ़े जिस मांहीं नभचर पक्षी बसे अपार, धन्य धन्य इस अचल ध्यानको महिमा सुर गांव उरधार ||९|| कर्मनामि शिव जाय से प्रभु ऋषभेश्वर से पहले जान, अष्ट गुणांकित सिद्ध शिरोमणि जगदीश्वर पद लयो वीरवती वीराग्रगन्य प्रभु बाहुबली जगधन्य महान, वीरवृत्तिके काज जिनेश्वर नमैं सदा जिन चित्र प्रमान || १०||
पुमान।
दाहा ।
नलगुल विंध्यगिरि जिनवर विंव प्रधान । छप्पन फुट उतंगतनो खड़गासन अमलान ॥ १ ॥ अतिशयवंत अनंत बल धारक विंव अनृप । अर्ध चढाय नमो सदा जे जे जिनवर भूप ॥
ओ ह्रीं वर्तमानात्रमपि समये प्रथम मुक्तिस्थान प्रामाय कमरि विजयी वीराधिवार वीराणां श्री बाहुबलि स्वामिनं अनपढ़ प्राताय महार्थ निर्वपामीति स्वाहा |
इत्याशवादः ।
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