SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह | २५१ अष्टापद पर जाय वीरनृप वीर व्रतीधर कीनों ध्यान, अचल अंग निरभंग संगतज संवतमरला एक स्थान ||८|| विषधर वंत्री करी चग्नतल ऊपर बेल चढ़ी अनिवार, युगजघा कटि बाहुवेदि कर पहुंची वक्षस्थल परमार | सिरके केश बढ़े जिस मांहीं नभचर पक्षी बसे अपार, धन्य धन्य इस अचल ध्यानको महिमा सुर गांव उरधार ||९|| कर्मनामि शिव जाय से प्रभु ऋषभेश्वर से पहले जान, अष्ट गुणांकित सिद्ध शिरोमणि जगदीश्वर पद लयो वीरवती वीराग्रगन्य प्रभु बाहुबली जगधन्य महान, वीरवृत्तिके काज जिनेश्वर नमैं सदा जिन चित्र प्रमान || १०|| पुमान। दाहा । नलगुल विंध्यगिरि जिनवर विंव प्रधान । छप्पन फुट उतंगतनो खड़गासन अमलान ॥ १ ॥ अतिशयवंत अनंत बल धारक विंव अनृप । अर्ध चढाय नमो सदा जे जे जिनवर भूप ॥ ओ ह्रीं वर्तमानात्रमपि समये प्रथम मुक्तिस्थान प्रामाय कमरि विजयी वीराधिवार वीराणां श्री बाहुबलि स्वामिनं अनपढ़ प्राताय महार्थ निर्वपामीति स्वाहा | इत्याशवादः । ३६
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy