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श्री जैन पृजा-पाठसंग्रह। धीरज अतुल बज्र मम नीरज सम वीगग्रणि अति बलवान, जिन छवि लखि मनु शशि छवि लाकुसुमायुध लीनों सुपुमान बालसमें जिन वाल चन्द्रमा शमि से अधिक घरे दुतिमार, जो गुरुदेव पढ़ाई विद्या शस्त्र शास्त्र मब पढ़ी अपार । ऋषभदेव ने पोदन पुरके नृप कीने भुजवली कुमार, दई अयोध्या भग्नेश्वरको आप बन प्रभुजी अनगार ।।४।। राजकाज पटखंड महीपति मब दल ले चढ़ि आये आप, बाहुबलि भी मन्मुख आये मंत्रिन तीन युद्ध दिये थाप । दृष्टि नीर अरु मल्ल युद्धमें दोनों नृप काजी बलधाप, वृथा हानि रुक जाय मैंन्यकी यातं लड़िये आपां आप ।।५।। भरत भुजवली भूपति भाई उतरे ममर भूमिमें जाय, दृष्टि नीर रण थके चक्रपति मल्लयुद्ध तब कंगे अघाय । पगतल चलत चलत अचला तब कंपत अचल शिम्बर ठहराय, निषध नील अचलाधर मानौं भये चलाचल क्रोध वमाय।।६।। भुज विक्रमवलवाहुबलीन लये चक्रपति अधर उठाय, चक्र चलायो चक्रपति तब मोभी विफल भयो तिहि ठाय । अति प्रचंड भुजदंड मंड़ सम नृप मादल बाहुबलि गय, सिंहासन मंगवाय जामपं अग्रजको दानों पधगय ।।७।। गजग्मा रामासुर धनुमें जोवन दमक दामिनी जान, भोग भुजंग जंग मम जगको जान त्याग कीनों निहि थान ।