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२६. श्री जैन पूजा-पाठ मंग्रह । ततक्षिण शिवका लायो सुरेन्द्र. आरूढ़ भये तापर जिनेन्द्र । सो शिवका निज कंधन उठाय, सुर नर खग मिल तप वन ठराय ॥ १२ ॥ कच लौंच वस्त्र भूषण उतार, भये जती नगन मुद्रा सुधार । हरि केश लेय रतनन पिटार. सो नीर उदधि मांही पधार ॥ १३ ॥ जय पारशनाथ अनाथ नाथ, सुर असुर नमत तुम चरण माथ । जुग नाग जरत कीनी सुरन यह बात सकल जगमें प्रत्यन ॥ १४ ॥ तुम सुर धनु सम लखि जग असार. तप तपत भये तन ममत चार । शठ कमठ कियो उपसर्ग आय, तुम मन सुमेरु नहिं डगमगाय ॥ १५ ॥ तुम शुक्ल ध्यान गहि खड़ग हाथ,