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बहु दान दियो जाचक जनान ॥३॥ छप्पन कुमारिका कियो आन. तुम मात सेव बहू भक्रि ठान । छः मास अगाऊ गर्भ आय, धनपति सुवरन नगरी ग्चाय ॥ ४ ॥ तुम तान महल आंगन मंझार. तिहूं काल रतन धारा अपार । वरषाए षट् नव मास सार. धनि जिन पुरुषन नयनन निहार ॥ ५ ॥ जय मल्लिनाथ देवन सुदेव. शत इन्द्र करत तुम चरण मेव । तुम जन्मत ही त्रय ज्ञान धार. आनन्द भयो निहं जग अपार ॥ ६ ॥ नव ही ले चहं विधि देव संग. सौ धर्म इन्द्र आयो उमङ्ग । सजि गज ले तुम हरि गोद आप.